महामारी के सबक को सीख बनाना होगा
ललित गर्ग
भारत में कोरोना संक्रमण के कहर को झेल रही जिन्दगी बड़े कठोर दौर के बाद अब सामान्य होने की कगार पर दिखाई दे रही है। वैज्ञानिकों की नेशनल सुपर मॉडल समिति ने लगभग चार माह पहले ही दावा किया था कि देश में कोरोना का चरम सितम्बर में ही आ चुका था और फरवरी 2021 में कोरोना का वायरस फ्लैट हो जाएगा। ऐसा ही होते हुए दिख रहा है। इस महामारी से ध्वस्त हुई अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाने एवं भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने की दृष्टि से बजट-2021 में अनेक प्रावधान किये गये हैं। कोरोना महामारी ने आर्थिक पीड़ाओं के साथ-साथ व्यक्तिगत, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पर्यावरण के सबक दिये हैं। उन्नत भारत का निर्माण करने की दिशा में आगे बढ़ते हुए हमें इन सबक को सीख बनाना होगा।
सबसे जरूरी सीख यही है कि हमें अब प्रकृति के निर्मम शोषण पर नियंत्रण करना होगा। जलवायु संकट, लगातार पिघलते ग्लेशियर, अनियमित मौसम, बढ़ता प्रदूषण, एवं वायु, भूमि व पहाड़ों पर असीमित दोहन ने देश और दुनिया को एक खतरनाक मुहाने पर ला खड़ा कर दिया है। ये सभी गंभीर संकट में हैं। कोरोना के संक्रमण दौर में यह देखना अद्भुत एवं सुखद अनुभव रहा कि लॉकडाउन ने प्रकृति को फिर से संवारने एवं स्वच्छ करने का काम किया है। इस अवधि में हमने कई दशकों के बाद फिर से नीला आसमान देखा, नदियों-तालाबों का जल स्वच्छ एवं साफ-सुथरा देखा, प्रदूषण का स्तर नीचे गिरा और जीवों, पक्षियों व कीटों की कई प्रजातियों को नवजीवन मिला। अब हमें लगातार प्रयास करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि ये सकारात्मक बदलाव निरंतर कायम रहें।
मनुष्य के लोभ एवं संवेदनहीनता त्रासदी की हद तक बढ़ते जाने के ही परिणाम हंै, जो वन्यजीवों, पक्षियों, प्रकृति एवं पर्यावरण के असंतुलन एवं विनाश के बड़े सबब बने हंै। मनुष्य के कार्य-व्यवहार से ऐसा मालूम होने लगा है, जैसे इस धरती पर जितना अधिकार उसका है, उतना किसी ओर का नहीं-न वृक्षों का, न पशुओं का, न पक्षियों का, न नदियों-पहाड़ों-तालाबों का। दरअसल हमारे यहां बड़े जीवों के संरक्षण पर तो ध्यान दिया जाता है, पर पक्षियों के संरक्षण पर उतना नहीं। कोरोना संकटकाल में हम प्रकृति के नजदीक गये, पक्षियों के साथ कुछ पल बिताये। जीवन के अनेकानेक सुख, संतोष एवं रोमांच में से एक यह भी है कि हम कुछ समय पक्षियों के साथ बिताने में लगाए, भविष्य में भी हम ऐसा क्यों नहीं कर पाएंगे? क्यों हमारी सोच एवं जीवनशैली का प्रकृति-प्रेम कोरोना संकट के समय ही सामने आया? मनुष्य के हाथों से रचे कृत्रिम संसार की परिधि में प्रकृति, पर्यावरण, वन्यजीव-जंगल एवं पक्षियों का कलरव एवं जीवन-ऊर्जा का लगातार खत्म होते जाना जीवन से मृत्यु की ओर बढ़ने का संकेत है। यह बात कोरोना महामारी ने हमें भली-भांति समझायी है, इस समझ को सीख बनाना होगा।
वृक्षारोपण, जैविक खेती को बढ़ाकर तथा माइक्रोवेव प्रदूषण पर अंकुश लगाकर पक्षियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। अब भी यदि हम जैव विविधता को बचाने का सामूहिक प्रयास न करें, तो बहुत देर हो जाएगी। लॉकडाउन के दौरान वन्यजीवों, पक्षियों, एवं प्रकृति के जीवन में भी अनेक प्रकार के सकारात्मक बदलाव देखने को मिले, जो मानव जीवन के लिये बहुत उपयोगी हैं। लेकिन क्या इन बदलावों को आगे भी जारी रखने के लिये हम अपनी जीवनशैली में बदलाव के लिये तैयार है?
कोरोना महामारी ने हमें पारिवारिक रिश्तों के महत्व को समझाया है। हमने इस दौरान रिश्तों की अहमियत को गहराई से समझा। लॉकडाउन ने रिश्तों को फिर से बनाने और विशेषकर बुजुर्गों के साथ स्नेह व सहयोग बढ़ाने को प्रेरित किया है। भले ही लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा की बढ़ी घटनाएं परेशान कर रही हैं। महिलाओं, बच्चों या बुजुर्गों के प्रति किसी भी तरह का अनुचित व्यवहार अस्वीकार्य है। यह भारतीय संस्कृति के सिद्धांतों के विपरीत भी है। कोविड-19 संकट ने हमें निजी जीवनशैली को भी इस कदर बदलने के लिए मजबूर किया है कि विलासिता की वस्तुओं पर अनावश्यक खर्च कम से कम हो। हममें से कुछ बेशक काफी ज्यादा खर्च कर सकने में सक्षम हैं, लेकिन इससे अनावश्यक खर्च का औचित्य साबित नहीं हो जाता। बाकायदा कानून द्वारा सगाई और विवाह समारोहों में पैसों का होने वाला अश्लील एवं अतिश्योक्तिपूर्ण प्रदर्शन रोका जाना चाहिए, और अनगिनत मेहमानों का आना नियंत्रित किया जाना चाहिए। ऐसे आयोजनों में अधिकतम 50 अतिथि शामिल होने की कोरोना सीख को आगे भी जारी रखा जाना चाहिए। ऐसे देश में, जहां लाखों लोगों को दिन भर में संतुलित भोजन तक न मिल पाता हो, वहां चंद लोगों पर बेहिसाब पैसे खर्च करना किसी अपराध से कम नहीं है।
हम मनुष्य जीवन की मूल्यवत्ता और उसके तात्पर्य को समझें। वह केवल पदार्थ भोग और सुविधा भोग के लिए नहीं बल्कि संयममय कर्म करते रहने के लिये है। मनुष्य जन्म तो किन्हीं महान उद्देश्यों के लिए हुआ है। हम अपना मूल्य कभी कम न होने दें। प्रयत्न यही रहे कि मूल्य बढ़ता जाए। लेकिन यह बात सदा ध्यान में रहे कि मूल्य जुड़ा हुआ है जीवनमूल्यों के साथ। अच्छी सोच एवं अच्छे उद्देश्यों के साथ। हायमैन रिकओवर ने कहा कि अच्छे विचारों को स्वतः ही नहीं अपनाया जाता है। उन्हें पराक्रमयुक्त धैर्य के साथ व्यवहार में लाया जाना चाहिए।
आत्मनिर्भर भारत एवं सशक्त भारत के निर्माण के लिये हमें अपनी विकास योजनाओं को नए सिरे से गढ़ना होगा, जिनमें स्वास्थ्य और शिक्षा के मद में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का एक निश्चित प्रतिशत आवंटन अनिवार्य होना चाहिए। इस दृष्टि से बजट-2021 में ध्यान दिया गया है, क्योंकि अगर भारत इन क्षेत्रों को मजबूत नहीं करता है, तो वैश्विक ताकत बनने की सारी उम्मीदें बिखर जाएंगी। हमारी बहत्तर वर्ष की राष्ट्रीय विफलता रही है कि आजादी के बाद से अब तक हमने इन पर इस कदर ध्यान नहीं दिया है। स्वास्थ्य की मद में दूरगामी सोच के साथ जो प्रावधान किये गये हंै, उनसे निश्चित ही भविष्य में कोरोना जैसी महामारियों से लड़ने में हम अधिक सक्षम हो सकेंगे।
कोरोना संकट से जुड़ी मुश्किलों से पार पाने के लिए विश्व स्तर पर एक दूसरे के प्रति सहयोग, संवेदना एवं समभाव अनिवार्य है। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनेक देशों को राहत सामग्री, दवाओं व व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (पीपीई किट) भेजी, सहयोग किया। भारत ने वैक्सीन भी तत्परता से तैयार की और अनेक देशों को उपलब्ध करा रहा है। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की हमारी प्राचीन अवधारणा कोरोना के कारण एक बार फिर बलवती हुई। कोई भी राष्ट्र, फिर चाहे वह कितना भी महान एवं सक्षम क्यों न हो, कोरोना जैसे संकटों से पार पाने के लिये उसे भी सहयोग अपेक्षित होता है। यह बात हमने कोरोना महामारी के दौरान देखी, अनेक शक्तिसम्पन्न देश इस संकट से लड़ने में अक्षम पाये गये। कोरोना महामारी ने एक बड़ा सबक दिया है कि मानव जाति अंततः एक साथ ही डूबेगी या फिर उबरेगी। हमारे पास दुनिया के कुछ सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक, आध्यात्मिक महामनीषी और शोधकर्ता हैं, और भारत की कई प्रयोगशालाएं कोरोना वायरस के खिलाफ टीका बनाने के लिए दिन-रात काम करके नया कीर्तिमान स्थापित किया है।
कोरोना महामारी ने हमारे जीने के तौर-तरीके को अस्तव्यस्त कर दिया है। हमारे द्वारा यह कामना करना अस्वाभाविक नहीं थी कि हमारे नष्ट हो गये आदर्श एवं संतुलित जीवन के गौरव को हम फिर से प्राप्त करेंगे और फिर एक बार हमारी जीवन-शैली में पूर्ण भारतीयता का सामंजस्य एवं संतुलन स्थापित होगा। किंतु कोरोना के जटिल ग्यारह माह के बीतने पर हालात का जायजा लें, तो हमारे सामाजिक, पारिवारिक और वैयक्तिक जीवन में जीवन-मूल्य एवं कार्यक्षमताएं को संगठित करने के लिये हमें व्यापक प्रयत्न करने होंगे। हर व्यक्ति जीवन को उन्नत बनाना चाहता है, लेकिन उन्नति उस दिन अवरुद्ध होनी शुरु हो जाती है जिस दिन हम अपनी कमियों एवं त्रुटियों पर ध्यान देना बन्द कर देते हैं। यह स्थिति आदमी से ऐसे-ऐसे काम करवाती है, जो आगे चलकर उसी के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं। रही-सही कसर पूरी कर देती है हमारी त्रुटिपूर्ण जीवनशैली। असंतुलित जीवन है तो आदमी सकारात्मक चिंतन कर नहीं सकता। महामात्य चाणक्य को राजनीति का द्रोणाचार्य माना जाता है। उनका दिया हुआ सूूत्र है-शासन को इन्द्रियजयी होना चाहिए। बात शासन से पहले व्यक्ति की है। व्यक्ति का जीवन ही राष्ट्र का निर्माण है। इसलिये प्रयास वहीं से शुरु होने चाहिए। प्रेषकः
(ललित गर्ग)
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