मेरा लेख इंटरनेट गेमों की खुमारी में गुम होता बचपन
ललित गर्ग :-
कोरोना महामारी के लाॅकडाउन के कारण स्कूली शिक्षा आॅनलाइन हुई और छोटे-छोटे बच्चें इंटरनेट की दुनिया एवं इंटरनेट गेमों से जुड़ गये। ये गेम एवं इंटरनेट की बढ़ती लत बच्चों में अनेक विसंगतियों, मानसिक विकारों एवं अस्वास्थ्य के पनपने का कारण बनी है, यह आदत बच्चों को एकाकीपन की ओर ले जाती है और एक समय के बाद वे अवसाद (डिप्रेशन) से घिर जाते हैं। बच्चे इंटरनेट गेम के आदी हो रहे हैं, धीरे-धीरे अपनी पढ़ाई और सामाजिक हकीकत से दूर होकर आभासी दुनिया के तिलिस्मी संसार में रमते जा रहे हैं। इस खौफनाक संसार ने बच्चों को आत्महत्या करने या हत्या करने की विवशता दी है, जो नये बनते समाज के लिये बहुत ही चिन्ता का विषय है।
इसी चिन्ता के मद्देनजर दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह बच्चों को आॅनलाइन गेम की लत से बचाने के लिए राष्ट्रीय नीति बनाने पर गंभीरता से विचार करें। दरअसल, बच्चों के बीच आॅनलाइन गेम खेलने की लत अब एक व्यापक समस्या बनती जा रही है, इसके घातक परिणाम भी सामने आ रहे हैं और लोगों के बीच इसे लेकर चिंता बढ़ रही हैं। कोरोना महामारी से पहले घरों में बच्चे अगर ज्यादा वक्त टीवी, कंप्यूटर या स्मार्टफोन में व्यस्त रहते थे तब अभिभावक उन्हें टोक देते थे। लेकिन अब आनलाइन पढ़ाई होने की वजह से हर वक्त बच्चे इंटरनेट से जुड़े रहते हैं। जब बच्चों के खेलने, मिलने-जुलने एवं परिचितों के यहां जाने की स्थितियां समाप्तप्राय है तब उन्हें खुद को व्यस्त रखने का आसान रास्ता इंटरनेट की दुनिया में व्यस्त होना लगता है।
आज इंटरनेट का दायरा इतना असीमित है कि अगर उसमें सारी सकारात्मक उपयोग की सामग्री उपलब्ध हैं तो बेहद नुकसानदेह, आपराधिक और सोचने-समझने की प्रक्रिया को बाधित करने वाली गतिविधियां भी बहुतायत में मौजूद हैं। आवश्यक सलाह या निर्देश के अभाव में बच्चे आॅनलाइन गेम या दूसरी इंटरनेट गतिविधियों के तिलिस्मी दुनिया में एक बार जब उलझ जाते हैं तो उससे निकला मुश्किल हो जाता है। इंटरनेट पर बच्चों के लिये चर्चित गेम है ‘ब्लू व्हेल‘। इस गेम की वजह से कई बच्चों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इस गेम में कुछ टास्क पूरे करने होते थे और बच्चे उसमें उलझते चले जाते थे। इस गेम का अंतिम टास्क ‘आत्महत्या’ होता था। इस तरह के गेमों के कारण बच्चों की लगातार हो रही आत्महत्या, बढ़ते तनाव एवं अवसाद की घटनाओं को देखते हुए न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप करते हुए इन गेमों पर बैन लगाना पड़ा।
पांच वर्ष से अठारह वर्ष के बच्चों में मोबाइल या टेक्नोलॉजी एडिक्शन की लत बढ़ रही है, जिनमें स्मार्ट फोन, स्मार्ट वॉच, टैब, लैपटॉप आदि सभी शामिल हैं। यह समस्या केवल भारत की नहीं, बल्कि दुनिया के हर देश की है। ऐसे अनेक रोगी बच्चें अस्पतालों में पहुंच रहे हैं, जिनमें इस लत के चलते बच्चे बुरी तरह तनावग्रस्त थे। कुछ दोस्त व परिवार से कट गए, कुछ तो ऐसे थे जो मोबाइल न देने पर पेरेंट्स पर हमला तक कर देते थे। बच्चे आज के समय में अपने आप को बहुत जल्दी ही अपनी उम्र से ज़्यादा बड़ा महसूस करने लगे हैं। अपने ऊपर किसी भी पाबंदी को बुरा समझते हैं, चाहे वह उनके हित में ही क्यों ना हो।
जब हम कोरोनाकाल के संकटों की बात करते हैं तो इसके दुष्प्रभावों में अर्थव्यवस्था के नुकसान, बेरोजगारी, सामुदायिक स्वास्थ्य पर खतरों को गिनते हैं लेकिन बच्चों के स्वास्थ्य और आनलाइन शिक्षा के खतरों को भूल जाते हैं। बड़ा तबका हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी के बच्चों के कॅरियर के लिए महत्वपूर्ण एक साल बिगड़ने की तो चिन्ता तो करता है, लेकिन उनका जीवन तबाह होने की कोई चिंता नहीं करता है। कोरोना संकट के बीच बच्चों की सेहत, पनप रही गलत आदतों और पढ़ाई को लेकर हमारी चिंताएं वास्तव में बहुत सतही हैं। मनोचिकित्सकों का कहना है कि मोबाइल एडिक्शन एक गंभीर रोग है। इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों के दिमाग पर पड़ रहा है। ऐसे मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जिनमें बच्चों में बढ़ती आभासी दुनिया की लत उन्हें तनाव दे रही है, अवसादग्रस्त बना रही है, हिंसक बना रही है।
इंटरनेट की यह आभासी दुनिया ना जाने और कितने सूरज व छोटे बच्चों को अपनी जाल में फंसाएगी और उनका जीवन तबाह करेगी। बच्चों के इंटरनेट उपयोग पर निगरानी व उन्हें उसके उपयोग की सही दिशा दिखाना बेहद ज़रूरी है। यदि मोबाइल की स्क्रिन और अंगुलियों के बीच सिमटते बच्चों के बचपन को बचाना है, तो एक बार फिर से उन्हें मिट्टी से जुड़े खेल, दिन भर धमा-चैकड़ी मचाने वाले और शरारतों वाली बचपन की ओर ले जाना होगा। ऐसा करने से उन्हें भी खुशी मिलेगी और वे तथाकथित इंटरनेट से जुड़े खतरों से दूर होते चले जाएंगे। अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं कि किसी बच्चे ने आॅनलाइन गेम में जुआ खेलने में काफी पैसे गंवा दिए। कभी अभिभावक ने ज्यादा खेलने से मना किया तो तनाव में आकर बच्चे ने खुदकुशी कर ली। ऐसी घातक घटनाएं भले ही आम नहीं हों, लेकिन इतना तय है कि आने वाले समय के समाज की खौफनाक एवं त्रासद तस्वीर बयां कर रही है। इंटरनेट की दुनिया में जरूरत से ज्यादा व्यस्तता बच्चों के कोमल मन-मस्तिष्क पर न केवल घातक बल्कि आपराधिक असर भी डाल रही है और उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से गहराई से प्रभावित कर रही है। इक्कीसवीं सदी के आरम्भ से ही दुनिया भर के घरों में इंटरनेट ने अपनी पैठ बनानी प्रारम्भ कर दी थी, लेकिन कोरोना महामारी ने यह लत और गहरी पैठा दी है। पहले यह घरों तक पहुंचा, फिर इंसान की जिंदगी में घुसा और अब उनके दिलों-दिमाग पर हावी है। इस इंटरनेट की आभासी दुनिया का सबसे ज़्यादा दुष्प्रभाव बच्चों के नाजूक मन पर पड़ रहा है और इसके कुचक्र से वे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। इसके लिए स्वयं बच्चों से ज़्यादा उनके माता-पिता उत्तरदायी हैं जिनके पास अपने बच्चों के लिए समय ना होने के कारण उन्हें मोबाइल और इंटरनेट का झुनझुना दे दिया जाता है।
कोरोना महामारी की मार से ज्यादातर लोगों का सामाजिक दायरा बेहद छोटा होकर परिवार और अपने घर में सिमट गया है और इसके सबसे ज्यादा शिकार बच्चे हुए हैं। आॅनलाइन व्यस्तता बच्चों और युवाओं को दुनिया की वास्तविकता से भागने की सुविधा मुहैया कराती है। वे समस्याओं से लड़ने के बजाय आभासी दुनिया के तिलिस्मी संसार में अपने मानसिक खालीपन की भरपाई खोजने लगते हैं। मगर उनकी ऐसी सामान्य-सी लगने वाली गतिविधियां जब लत में तब्दील हो जाती हैं तब उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है। इसमें दो राय नहीं कि आधुनिक तकनीकी से लैस संसाधनों और खासतौर पर इंटरनेट ने आम लोगों की जिंदगी को आसान बनाया है। लेकिन यह व्यक्ति के विवेक पर निर्भर है कि वह इन संसाधनों का सकारात्मक इस्तेमाल करता है या नकारात्मक।
इंटरनेट के संसार से जुड़े कुछ बुरे प्रभाव हैं साइबर बुलिंग या साइबर स्टॉकिंग। इंटरनेट के ज़रिए खेले जाने वाले हिंसक गेम और इस आभासी संसार में फैली झूठी खबरें व अफवाहें बच्चों को तुरंत उत्तेजित कर किसी भी बात पर त्वरित प्रतिक्रिया देने को मजबूर कर देती हैं। साइबर बुलिंग, स्टॉकिंग या हैकिंग भले ही अलग-अलग नाम हैं लेकिन इनके अर्थ लगभग एक ही हैं। सरल शब्दों में कहें तो इन शब्दों का मतलब है ऑनलाइन किसी का पीछा करना, उसे परेशान करना, उसका डाटा या जानकारियां चुराकर ब्लैकमेल करना। साइबर बुलिंग की चपेट में बच्चे काफी जल्दी आ जाते हैं। इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग की वजह से साइबर अपराधों की संख्या भी बढ़ रही है। हमारी सरकार एवं सुरक्षा एजेंसियां इन अपराधों से निपटने में विफल साबित हो रही हैं।
ललित गर्ग)
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