Road Accident: : बढ़ते सड़क हादसों की चुनौतियां कब तक ?
– ललित गर्ग-
Road Accident: सड़क एवं राजमार्ग परिवहन मंत्रालय (Ministry of Road and Highways Transport) द्वारा सड़क सुरक्षा सप्ताह को प्रतिवर्ष 11 जनवरी से 17 जनवरी तक मनाया जाता है, जिसके माध्यम से नागरिकों को सड़क सुरक्षा के बारे में जागरूक किया जाता है। भारत का सड़क यातायात तमाम विकास की उपलब्धियों एवं प्रयत्नों के बावजूद असुरक्षित एवं जानलेवा बना हुआ है, सुविधा की खूनी एवं हादसे की सड़कें नित-नयी त्रासदियों की गवाह बन रही है। भारत में सड़क दुर्घटनाएं मौतों और चोटों के प्रमुख कारणों में से एक रही हैं। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत की जीडीपी का करीब तीन से पांच फीसदी हिस्सा सड़क हादसों में लगा है। न केवल भारत बल्कि विश्व में सड़क यातायात में मौत या जख्मी होना कुछ बहुत बड़ी परेशानियों में से एक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर वर्ष 13 लाख से अधिक लोग सड़क हादसों के शिकार व्यक्ति की मौत हो जाती है। सड़क हादसों में सबसे ज्यादा मौतें भारत में होती है।
परिवहन नियमों का सख्ती से पालन जरूरी
परिवहन नियमों का सख्ती से पालन जरूरी है, केवल चालान काटना समस्या का समाधान नहीं है। देश में 30 प्रतिशत ड्राइविंग लाइसेंस फर्जी हैं। परिवहन क्षेत्र में भारी भ्रष्टाचार है लिहाजा बसों का ढंग से मेनटेनेंस भी नहीं होता। इनमें बैठने वालों की जिंदगी दांव पर लगी होती है। देश भर में बसों के रख-रखाव, उनके परिचालन, ड्राइवरों की योग्यता और अन्य मामलों में एक-समान मानक लागू करने की जरूरत है, तभी देश के नागरिक एक राज्य से दूसरे राज्य में निश्चिंत होकर यात्रा कर सकेंगे। तेज रफ्तार से वाहन दौड़ाने वाले लोग सड़क के किनारे लगे बोर्ड़ पर लिखे वाक्य ‘दुर्घटना से देर भली’ पढ़ते जरूर हैं, किन्तु देर उन्हें मान्य नहीं है, दुर्घटना भले ही हो जाए।
दुनिया की जानी-मानी पत्रिका ‘द लांसेट’ में इस मसले पर केंद्रित एक अध्ययन में बताया गया है कि भारत में सड़क सुरक्षा के उपायों में सुधार लाकर हर साल तीस हजार से ज्यादा लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है। अध्ययन के मुताबिक, खुनी सड़कों एवं त्रासद दुर्घटनाओं के मुख्य कारण हैं- वाहनों की बेलगाम या तेज रफ्तार, शराब पीकर गाड़ी चलाना, हेलमेट नहीं पहनना और सीट बेल्ट का इस्तेमाल नहीं करना शामिल हैं। भले ही हर सड़क दुर्घटना को केन्द्र एवं राज्य सरकारें दुर्भाग्यपूर्ण बताती है, उस पर दुख व्यक्त करती है, मुआवजे का ऐलान भी करती है लेकिन बड़ा प्रश्न है कि दुर्घटनाएं रोकने के गंभीर एवं प्रभावी उपाय अब तक क्यों नहीं किए जा सके हैं? जो भी हो, सवाल यह भी है कि इस तरह की तेज रफ्तार सड़कों पर लोगों की जिंदगी कब तक इतनी सस्ती बनी रहेगी? सचाई यह भी है कि पूरे देश में सड़क परिवहन भारी अराजकता का शिकार है। सबसे भ्रष्ट विभागों में परिवहन विभाग शुमार है।
प्रतिदिन करीब 415 लोग सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवाते हैं
परिवहन मंत्रालय की यह जानकारी हतप्रभ करने वाली है कि देश में प्रतिदिन करीब 415 लोग सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवाते हैं। कोई भी अनुमान लगा सकता है कि एक वर्ष में यह संख्या कहां तक पहुंच जाती होगी? इसका कोई मतलब नहीं कि प्रति वर्ष लगभग डेढ़ लाख लोग सड़क हादसों में जान से हाथ धो बैठें। इन त्रासद आंकड़ों ने एक बार फिर यह सोचने को मजबूर कर दिया कि आधुनिक और बेहतरीन सुविधा की सड़के केवल रफ्तार एवं सुविधा के लिहाज से जरूरी हैं या फिर उन पर सफर का सुरक्षित होना पहले सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
‘दुर्घटना’ एक ऐसा शब्द है जिसे पढ़ते ही कुछ दृश्य आंखांे के सामने आ जाते हैं, जो भयावह होते हैं, त्रासद होते हैं, डरावने होते हैं, खूनी होते हैं। खूनी सड़कों में सबसे शीर्ष पर है यमुना एक्सप्रेस-वे। इस पर होने वाले जानलेवा सड़क हादसे कब थमेंगे? यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि इस पर होने वाली दुर्घटनाओं और उनमें मरने एवं घायल होने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यही नहीं, देश की अन्य सड़के इसी तरह इंसानों को निगल रही है, मौत का ग्रास बना रही है। इनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। सड़क दुर्घटनाओं में लोगों की मौत यही बताती है कि अपने देश की सड़कें कितनी अधिक जोखिम भरी हो गई हैं। बड़ा प्रश्न है कि फिर मार्ग दुर्घटनाओं को रोकने के उपाय क्यों नहीं किए जा रहे हैं? सच यह है कि बेलगाम वाहनों की वजह से सड़कें अब पूरी तरह असुरक्षित हो चुकी हैं। सड़क पर तेज गति से चलते वाहन एक तरह से हत्या के हथियार होते जा रहे हैं वहीं सुविधा की सड़के खूनी मौतों की त्रासद गवाही बनती जा रही है।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways) लोगों के सहयोग से वर्ष 2025 तक सड़क हादसों में 50 प्रतिशत की कमी लाना चाहता है, लेकिन यह काम तभी संभव है जब मार्ग दुर्घटनाओं के मूल कारणों का निवारण करने के लिए ठोस कदम भी उठाए जाएंगे। कुशल ड्राइवरों की कमी को देखते हुए ग्रामीण एवं पिछड़े इलाकों में ड्राइवर ट्रेनिंग स्कूल खोलने की तैयारी सही दिशा में उठाया गया कदम है, लेकिन इसके अलावा भी बहुत कुछ करना होगा। हमारी ट्रेफिक पुलिस एवं उनकी जिम्मेदारियों से जुड़ी एक बड़ी विडम्बना है कि कोई भी ट्रेफिक पुलिस अधिकारी चालान काटने का काम तो बड़ा लगन एवं तन्मयता से करता है, उससे भी अधिक रिश्वत लेने का काम पूरी जिम्मेदारी से करता है, प्रधानमंत्रीजी के तमाम भ्रष्टाचार एवं रिश्वत विरोधी बयानों एवं संकल्पों के यह विभाग धडल्ले से रिश्वत वसूली करता है, लेकिन किसी भी अधिकारी ने यातायात के नियमों का उल्लघंन करने वालों को कोई प्रशिक्षण या सीख दी हो, नजर नहीं आता। यह स्थिति दुर्घटनाओं के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है।
सड़क हादसों का कारण
जरूरत है सड़कों के किनारे अतिक्रमण को दूर करने की, आवारा पशुओं के प्रवेश एवं बेघड़क घुमने को भी रोकने की। ये दोनों ही स्थितियां सड़क हादसों का कारण बनती है। यह भी समझने की जरूरत है कि सड़क किनारे बसे गांवों से होने वाला हर तरह का बेरोक-टोक आवागमन भी जोखिम बढ़ाने का काम करता है। इस स्थिति से हर कोई परिचित है, लेकिन ऐसे उपाय नहीं किए जा रहे, जिससे कम से कम राजमार्ग तो अतिक्रमण और बेतरतीब यातायात से बचे रहें। इसमें संदेह है कि उलटी दिशा में वाहन चलाने, लेन की परवाह न करने और मनचाहे तरीके से ओवरटेक करने जैसी समस्याओं का समाधान केवल सड़क जागरूकता अभियान चलाकर किया जा सकता है। इन समस्याओं का समाधान तो तब होगा जब सुगम यातायात के लिए चौकसी बढ़ाई जाएगी और लापरवाही का परिचय देने अथवा जोखिम मोल लेने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी, चालान काटना या नये-नये जुर्माने की व्यवस्था करने से सड़क दुर्घटनाएं रूकने वाली नहीं है। यह ठीक नहीं कि जानलेवा सड़क दुर्घटनाओं का सिलसिला कायम रहने के बाद भी राजमार्गों पर सीसीटीवी और पुलिस की प्रभावी उपस्थिति नहीं दिखती।
विदेशी शिक्षण संस्थानों को न्यौतना कहीं खतरा न बने
अध्ययन में यह तथ्य भी उभर कर सामने आया कि सड़कों पर वाहनों की गति की जांच और लगाम लगाने के लिए जरूरी कदम उठाने से भारत में बीस हजार से ज्यादा लोगों की जान बच सकती है। वहीं केवल हेलमेट पहनने को लोग अपने लिए अनिवार्य मानने लगें और यातायात महकमे की ओर से इस नियम का पालन सुनिश्चित किया जाए तो इससे पांच हजार छह सौ तिरासी जिंदगी बचाई जा सकती है। इसी तरह, वाहनों में बैठ कर सफर करने वाले लोगों के बीच सीट बेल्ट के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर तीन हजार से अधिक लोगों को मरने से बचाया जा सकता है। इसके अलावा, शराब पीकर वाहन चलाने की वजह से सड़क हादसों की कैसी तस्वीर बनती है, यह किसी से छिपा नहीं है। यह गंभीर चिंता का विषय है कि सड़कों पर बेलगाम गाड़ी चलाना कुछ लोगों के लिए मौज-मस्ती एवं फैशन का मामला होता है लेकिन यह कैसी मौज-मस्ती या फैशन है जो कई जिन्दगियां तबाह कर देती है। ऐसी दुर्घटनाओं को लेकर आम आदमी में संवेदनहीनता की काली छाया का पसरना त्रासद है और इससे भी बड़ी त्रासदी सरकार की आंखों पर काली पट्टी का बंधना है। हर स्थिति में मनुष्य जीवन ही दांव पर लग रहा है। इन बढ़ती दुर्घटनाओं की नृशंस चुनौतियों का क्या अंत है?
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(ललित गर्ग)
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